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बच्चों, हम अक्सर सोचते हैं कि जंगल का राजा वही बन सकता है जो शरीर से ताकतवर हो, जैसे शेर या हाथी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कभी-कभी एक छोटा सा जानवर भी अपनी अकल से बड़े-बड़े सूरमाओं के छक्के छुड़ा सकता है? आज की कहानी एक ऐसे ही नन्हे खरगोश की है, जिसने साबित कर दिया कि मुसीबत के समय घबराना नहीं, बल्कि दिमाग की बत्ती जलानी चाहिए।
बंटी खरगोश और सूखा तालाब
हरितवन नाम का एक बहुत ही खुशहाल जंगल था। वहां
एक बार गर्मियों में बहुत भीषण गर्मी पड़ी। जंगल के नदी-नाले सब सूख गए। बस जंगल के बीचों-बीच एक पुराना तालाब बचा था, जिसमें थोड़ा पानी बाकी था। जंगल के सभी जानवर—हिरण, बंदर, और पक्षी—अपनी प्यास बुझाने वहीं आते थे।
शेरू भेड़िये का आतंक
लेकिन उस तालाब पर एक मुसीबत आ गई। शेरू नाम का एक खूंखार भेड़िया वहां आकर बैठ गया। शेरू बहुत लालची और ताकतवर था। उसने ऐलान कर दिया, "यह तालाब अब मेरा है! जो भी यहां पानी पीने आएगा, उसे बदले में मुझे अपने खाने का हिस्सा देना होगा, वरना मैं उसे ही खा जाऊंगा!"
बेचारे जानवर डर गए। हिरण प्यासा रह जाता, बंदर पेड़ पर ही बैठे रहते। किसी की हिम्मत नहीं थी कि शेरू से पंगा ले।
बंटी की तरकीब
बंटी खरगोश ने देखा कि उसके साथी प्यास से तड़प रहे हैं। उसने सोचा, "ताकत से तो मैं शेरू को हरा नहीं सकता, क्योंकि वह मुझसे दस गुना बड़ा है। लेकिन दिमाग तो मेरा भी चलता है।"
बंटी ने प्रकृति के नियमों (Logic) का सहारा लेने का सोचा। उसने देखा कि तालाब के पास की जमीन बहुत चिकनी और गीली मिट्टी (Clay) वाली है। उसे एक तरकीब सूझी।
अगले दिन दोपहर में, जब सूरज सिर पर था और गर्मी से बुरा हाल था, बंटी निडर होकर शेरू के पास पहुंचा। शेरू गुर्राया, "ओए पिद्दी! तू यहां क्यों आया? मेरा खाना लाया है क्या?"
बंटी ने नाटक करते हुए कहा, "अरे शेरू दादा! मैं तो आपको एक बहुत बड़ी खबर देने आया था। जंगल के दूसरी तरफ एक नया जानवर आया है। वह कह रहा है कि वह आपसे भी ज्यादा ताकतवर है और जल्द ही इस तालाब पर कब्जा कर लेगा।"
शेरू गुस्से से लाल हो गया, "क्या? मुझसे ज्यादा ताकतवर? कौन है वो? मुझे अभी ले चल उसके पास।"
दलदल का जाल
बंटी ने कहा, "दादा, वह उस पुरानी गुफा के पास वाले कीचड़ में छिपा बैठा है। चलिए, मैं दिखाता हूं।"
बंटी शेरू को उस रास्ते पर ले गया जहां उसने पहले से मुआयना (Inspection) किया हुआ था। वहां एक दलदल (Quicksand) जैसा हिस्सा था, जो ऊपर से तो सूखी जमीन दिखता था, लेकिन भारी वजन पड़ते ही नीचे धंस जाता था।
बंटी हल्का था, इसलिए वह फुदकते हुए उस दलदल के ऊपर से निकल गया और एक मजबूत जड़ पर जा बैठा। उसने चिल्लाकर कहा, "दादा! वो देखिए, वो झाड़ियों के पीछे है!"
शेरू ने आव देखा न ताव, गुस्से में भारी भरकम शरीर के साथ छलांग लगा दी। धप!!
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जैसे ही शेरू उस जगह कूदा, वह गीली और गहरी मिट्टी में फंस गया। जितना वह निकलने के लिए हाथ-पैर मारता, उतना ही वह अंदर धंसता जाता। (विज्ञान का नियम है- दलदल में ज्यादा हिलने से आप जल्दी डूबते हैं)।
बंटी ने दूर से मुस्कुराते हुए कहा, "शेरू दादा, वह 'दूसरा जानवर' कोई और नहीं, आपका अपना 'घमंड' था। आप ताकतवर हो सकते हैं, लेकिन अकलमंद नहीं।"
जंगल की जीत
शेरू कमर तक मिट्टी में फंस चुका था। वह अब किसी का पीछा नहीं कर सकता था। बंटी ने बाकी जानवरों को बुलाया। सभी ने मिलकर पेट भरकर पानी पिया। शेरू को वहां फंसा देख सबने राहत की सांस ली। हालांकि, बाद में दयालु हाथियों ने रस्सी फेंककर शेरू को बाहर निकाल दिया, लेकिन इस शर्त पर कि वह जंगल छोड़कर चला जाएगा। शेरू अपनी जान बचाकर वहां से भाग गया।
उस दिन सबको समझ आ गया कि छोटा कद होने से कोई कमजोर नहीं होता।
कहानी से सीख (Moral of the Story)
बच्चों, बंटी खरगोश की यह कहानी हमें दो बहुत पते की बातें सिखाती है:
बुद्धि बल से बड़ी होती है: जहां ताकत काम न आए, वहां दिमाग का इस्तेमाल करना चाहिए।
घमंड का सिर नीचा: शेरू को अपनी ताकत पर घमंड था, लेकिन एक छोटे से खरगोश ने उसे हरा दिया।
निष्कर्ष: तो दोस्तों, अगर कभी कोई आप पर धौंस जमाए या आपको डराए, तो डरना मत। बंटी की तरह ठंडे दिमाग से सोचना, कोई न कोई रास्ता जरूर निकल आएगा।
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